मैं हसीना गज़ब की

लेखिका: शहनाज़ खान

 


भाग ६


 

हम दोनों एक दूसरे को चूमते हुए और सहलाते हुए व्हिस्की और कॉफी सिप कर रहे थे।

 

�आपको भाभी जान कैसे झेलती होंगी। मेरी तो हालत पतली करके रख दी आपने। ऐसा लग रहा है कि सारी हड्डियों का कचूमर बना दिया हो अपने।� मैंने उनके होंठों पर लगी झाग को अपनी जीभ से साफ़ करते हुए कहा, �देखो क्या हालत कर के रख दी है�, मैंने अपने गोरे मम्मों पर उभरे लाल नीले निशानों को दिखाते हुए कहा। �इतनी बुरी तरह मसला है आपने कि कईं दिन तक ब्रा पहनना मुश्किल हो जायेगा।� नशे में मेरी आवाज़ भी थोड़ी सी बहकने लगी थी।

 

फिरोज़ भाई जान ने मेरे मम्मों को चूमते हुए अचानक अपनी दो अँगुलियाँ मेरी रस से भरी चूत में घुसा दी। जब अँगुलियाँ बाहर निकाली तो दोनों अँगुलियों से रस चू रहा था। उन्होंने एक अँगुली अपने मुँह में रखते हुए दूसरी अँगुली मेरी ओर की जिसे मैंने अपने मुँह में डाल लिया। दोनों एक-एक अँगुली को चूस कर साफ़ करने लगे।

 

�मज़ा आ गया आज। इतना मज़ा सैक्स में मुझे पहले कभी नहीं आया था�, फिरोज़ भाई जान ने मेरी तारीफ़ करते हुए कहा, �तुम बराबर का साथ देती हो तो सैक्स में मज़ा बहुत आता है। नसरीन तो बस बिस्तर पर पैरों को फैला कर पड़ जाती है मानो मैं उससे जबरदस्ती कर रहा हूँ।�

 

�अब आपको कभी उदास होने नहीं दूँगी। जब चाहे मुझे अपनी गोद में खींच लेना.... अब तो इस जिस्म पर आपका भी हक बन गया है।�

 

हम दोनों इसी तरह बातें करते हुए अपनी व्हिस्की या कॉफी सिप करते रहे। उनकी कॉफी खत्म हो जाने के बाद वो उठे। उन्होंने मुझे अपने ग्लास में फिर व्हिस्की डालते हुए देखा तो मुझे रोक दिया। �बहुत पी चुकी हो तुम..... बहुत नशा हो गया.... और पियोगी तो फिर तबियत बिगड़ जायेगी�, कहते हुए उन्होंने झुक कर मुझे अपनी गोद में ले लिया और मुझे अपनी बाँहों में उठाये बेडरूम की तरफ़ बढ़े।

 

�मैंने कभी कॉलेज के दिनों में किसी से इश्क नहीं किया था। आज फिर लगता है मैं उन ही दिनों में लौट गयी हूँ�, कहते हुए मैंने उनके सीने पर अपने होंठ रख दिये। उन्होंने मुझे और सख्ती से जकड़ लिया। मेरे मम्मे उनके सीने में पिसे जा रहे थे। मैंने उनके बाँह के मसल्स जो मुझे गोद में उठाने के कारण फूले हुए थे, उसे काटने लगी।

 

उन्होंने मुझे बेडरूम में लाकर बिस्तर पर लिटा दिया। फिर वो मेरी बगल में लेट गये और मेरे चेहरे को कुछ देर तक निहारते रहे। फिर मेरे होंठों पर अपनी अँगुली फ़िराते हुए बोले, �मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि तुम जैसी कोई हसीना कभी मेरी बाँहों में आयेगी।�

 

�क्यों? भाभी तो मुझसे भी सुंदर हैं!� मैंने उनसे कहा।

 

�होगी.. लेकिन तुममें ऐसा कुछ है जिसके लिये मैं आज तक तरस रहा था.... तुम सबसे ही अलग हो।�

 

�अब और हिम्मत नहीं है लेकिन मन नहीं भरा। एक बार और मुझे वो सब दे दो। अपने दूध से मुझे भिगो दो।� मैंने उनके कान को अपने दाँतों से काटते हुए कहा।

 

�अब इसका खड़ा होना मुश्किल है। आज शाम से काफी काम करना पड़ा ना, इसलिये बेचारा मुरझा गया है�, फिरोज़ ने अपने लंड की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।

 

�अरे! मैं किस लिये हूँ। अभी देखती हूँ कैसे ये नहीं तनता। अभी इसे खड़ा करती हूँ�, कहकर मैं उनके लंड को सहलाने लगी। कुछ देर तक सहलाने पर भी कोई खास असर नहीं पड़ा तो मैंने उनको चित्त करके लिटा कर उनके लंड को अपने दोनों मम्मों के बीच लेकर उसे अपने मम्मों से सहलाने लगी। उनके लंड में हल्का सा तनाव आ रहा था लेकिन वो कुछ ही देर में वापस चला जाता था। फिर मैंने उनके निप्पल को दाँतों से धीरे-धीरे काटना शुरू किया तो उनके जिस्म में उत्तेजना बढ़ने लगी। लेकिन अभी तक लंड अपनी पूरी जवानी पर नहीं आया था।

 

आखिरकार मैं उनके लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। अपनी जीभ निकाल कर उनके लंड को और उनकी गेंदों को चाटने लगी। बीच-बीच में हल्के-हल्के से उनके लंड पर अपने दाँत भी गड़ा देती। उनका लंड अब तन गया था। मैं उसे चाटने के साथ-साथ अपने हाथों से भी सहला रही थी। इस बार उनकी टाँगों को मोड़ कर फ़ैलाने की बारी मेरी थी। मैंने उनकी टाँगों को फैला दिया और उनकी दोनों टाँगों के बीच उनकी गेंदों के नीचे अपनी जीभ फिराने लगी। दोनों गेंदों के नीचे जहाँ दोनों टाँगों का जोड़ होता है वो हिस्सा बहुत ही सेंसटिव था, वहाँ जीभ फ़िराते ही उनका लंड एकदम सख्त हो गया।

 

मैंने अपने सर को उठाकर इतराते हुए उनकी आँखों में झाँका और मुस्कुरा दी, �देखा? जीत किसकी हुई। अरे औरतों का बस चले तो मुर्दों के लंड भी खड़े कर के दिखा दें।�

 

�मान गये तुमको.... तुम तो वायग्रा से भी ज्यादा पॉवरफुल हो�, फिरोज़ भाई जान ने कहा।

 

�अब तुम चुपचाप पड़े रहो.... अब तुम्हें मैं चोदुँगी। मेरे इस पागल आशिक को खुश करने की बारी अब मेरी है।� मैं अपनी जुबान से निकल रहे लफ्जों पर खुद हैरान रह गयी। पहली बार इस तरह के शब्द मैंने किसी गैर-मर्द से कहे थे।

 

�तुम्हारे इस गधे जैसे लंड का आज मैं सारा रस निचोड़ लुँगी। भाभी को अब अगले एक हफ़्ते तक बगैर रस के ही काम चलाना पड़ेगा�, कहते हुए मैं उनके ऊपर चढ़ गयी और अपने हाथों से उनके लंड को अपनी चूत पर सेट करके अपना बोझ उनके लंड पर डाल दिया। उनका लंड वापस मेरी चूत की दीवारों को रगड़ता हुआ अंदर धंस गया।

 

�उफ़्फ़्फ़ऽऽऽ हर बार मुझे लगता है कि तुम्हारा लंड गले तक घुस जायेगा। भाभी कैसे झेलती होंगी आपको।� मेरे मुँह से एक हल्की सी दर्द भरी आवाज निकली। ऐसा लग रहा था कि शायद उनके लंड ने ठोक-ठोक कर अंदर की चमड़ी उधेड़ दी हो। मेरी चूत इस बार तो दर्द से फ़टी जा रही थी। मैंने अपने निचले होंठ को दाँतों से सख्ती से दबा कर किसी भी तरह की आवाज को मुँह से निकलने से रोका।

 

�इसे झेल नहीं पाती है.... तभी शायद इधर-उधर मुँह मारती फिरती है�, उन्होंने कहा।

 

�फिर तो उन्हें वो मज़ा मिल नहीं पाता होगा जो इस वक्त मुझे आ रहा है।� मैंने उनके सीने पर उगे बालों को अपनी मुठ्ठी में भर कर खींचा तो वो भी उफ़्फ़ कर उठे।

 

�क्या कर रही हो दर्द हो रहा है!�

 

मैंने हँसते हुए कहा, �कुछ दर्द तो तुम्हें भी होना चाहिये ना।�

 

मैं अब जोर-जोर से उनके लंड पर अपनी कमर को ऊपर नीचे करने लगी। वो मेरे दोनों मम्मों को अपने हाथ में लेकर बुरी तरह मसल रहे थे। मैं अपने दोनों घुटनों को मोड़ कर उनके लंड पर बैठी हुई थी। इस तरह पता नहीं कब तक हम दोनों की चुदाई चलती रही। हम दोनों ने आँखें बंद कर रखी थी और बस एक दूसरे के साथ चुदाई का मज़ा ले रहे थे। मैं उनके ऊपर झुक कर अपने लंबे बालों को उनके सीने पर फ़िरा रही थी। मैंने अपनी चूत के मसल्स से उनके लंड को बुरी तरह जकड़ रखा था। कुछ देर बाद मेरे जिस्म में वापस सिहरन होने लगी तो मैं समझ गयी कि मेरा निकलने वाला है। मैंने फिरोज़ भाई जान के ऊपर लेट कर अपने दाँत उनके सीने में गड़ा दिये। मेरे नाखून उनके कंधों में धंसे हुए थे और मुँह खुल गया था। मुँह से एक इत्मीनान की �आआऽऽऽहहऽऽऽऽ� निकली और मैं एक बार फिर खल्लास होकर उनके ऊपर पसर गयी। उनका अभी तक रस निकला नहीं था इसलिये अभी वो मुझे छोड़ना नहीं चाहते थे लेकिन मैं थक कर चूर हो गयी थी। इस एक रात में ना जाने कितनी बार मैंने रस की बोंछार उनके लंड पर की थी। जिस्म इतना थक चुका था कि अब हाथ पैर हिलाने में भी जोर आ रहा था लेकिन मन था कि मान ही नहीं रहा था।

 

उन्होंने मुझे अपने ऊपर से उठाया और बिस्तर पर चौपाया बना कर झुका दिया। मेरे हाथ मुड़ गये और मेरा मुँह तकिये में धंस गया। उन्होंने मेरी कमर को बिस्तर के किनारे करके घुमाया और बिस्तर के नीचे खड़े हो गये। इस हालत में मैं अपनी कमर उनकी तरफ़ उठा कर बिस्तर में धंसी हुई थी। वो बिस्तर से उतर कर नीचे खड़े हो गये और पीछे से मेरी चूत पर अपने लंड को सटा कर धक्का मार दिया। मेरी चूत एक बार फिर दर्द से काँप गयी। मेरा मुँह तकिये में धंसा होने के कारण सिर्फ कुछ �गूँ-गूँ� जैसी आवाज निकली और मेरी चूत पर उनका वार चालू हो गया। इस तरह मैं अपने जिस्म को उठाये हुए नहीं रख पा रही थी। नशे में मेरा जिस्म उनके धक्कों से बार-बार इधर उधर लुढ़कने लगता और इसलिये उन्हें अपने हाथों से चूत को सामने की ओर रखना पड़ रहा था। इस तरह जब बार-बार परेशानी हुई तो उन्होंने मुझे बिस्तर से नीचे उतार कर पहले बिस्तर के कोने में कुशन रखा और फिर मुझे घुटनों के बल झुका दिया। अब मेरी टाँगें ज़मीन पर घुटनों के बल टिकी हुई थीं और कमर के ऊपर का जिस्म कुशन के ऊपर से होता हुआ बिस्तर पर पसरा हुआ था। कुशन होने के कारण मेरे नितंब ऊपर की ओर उठ गये थे। ये पोज़िशन मेरे लिये ज्यादा सही थी। मेरे किसी भी अंग पर अब ज्यादा जोर नहीं पड़ रहा था। इस हालत में उन्होंने बिस्तर के ऊपर अपने हाथ रख कर अपने लंड को वापस मेरी चूत में ठोक दिया। कुछ देर तक इस तरह ठोकने के बाद उनके लंड से रस झड़ने लगा। उन्होंने मेरी चूत में से अपना लंड निकाल कर मुझे सीधा किया और अपने वीर्य की धार मेरे चेहरे पर और मेरे बालों पर छोड़ दी। इससे पहले कि मैं अपना मुँह खोलती, मैं उनके वीर्य से भीग चुकी थी। इस बार झड़ने में उन्हें बहुत टाईम लग गया।

 

मैं थकान और नशे से एकदम निढाल हो चुकी थी। मुझमें उठकर बाथरूम में जाकर अपने को साफ़ करने की भी हिम्मत नहीं थी। मैं उसी हालत में आँखें बंद किये पड़ी रही। मेरा आधा जिस्म बिस्तर पर था और आधा नीचे। ऐसी अजीबोगरीब हालत में भी मैं गहरी नींद में डूब गयी। पता ही नहीं चला कब फिरोज़ भाई जान ने मुझे सीधा करके बिस्तर पर लिटा दिया और मेरे नंगे जिस्म से लिपट कर खुद भी सो गये।

 

बीच में एक बार जोर की पेशाब आने की वजह से नींद खुली तो मैंने पाया कि फिरोज़ भाई जान मेरे एक मम्मे पर सिर रखे सो रहे थे। मैंने उठने की कोशिश की लेकिन मेरा सिर नशे में घूम रहा था और पूरा जिस्म दर्द से टूट रहा था। इसलिये मैं दर्द से कराह उठी। मुझसे उठा नहीं गया तो मैंने फिरोज़ भाई जान को उठाया।

 

�मुझे सहारा देकर बाथरूम तक ले चलो प्लीज़�, मैंने लड़खड़ाती ज़ुबान में उनसे कहा। उन्होंने उठ कर मुझे सहारा दिया तो हाई-हील सैंडलों में मैं लड़खड़ाते कदमों से उनके कंधे पर सारा बोझ डालते हुए बाथरूम में गयी। वो मुझे अंदर छोड़ कर वहीं खड़े हो गये।

 

�आप बाहर इंतज़ार कीजिये.... मैं बुला लुँगी�, मैंने कहा।

 

�अरे कोई बात नहीं.... मैं यहीं खड़ा रहता हूँ.... अगर तुम गिर गयीं तो?�

 

�छी! इस तरह आपके सामने इस हालत में मैं कैसे पेशाब कर सकती हूँ?�

 

�तो इसमें शरमाने की क्या बात है? हम दोनों में तो सब कुछ हो गया है.... अब शरम किस बात की?� उन्होंने बाथरूम का दरवाजा भीतर से बंद करते हुए कहा।

 

मैंने शरम के मारे अपनी आँखें बंद कर लीं। मेरा चेहरा शरम से लाल हो रहा था। लेकिन मैं इस हालत में अपने पेशाब को रोकने में नाकाम थी और नशे में मुझसे खड़ा भी नहीं रहा जा रहा था। इसलिये मैं कमोड की सीट पर इसी हालत में बैठ गयी।

 

जब मैं फ्री हुई तो वो वापस मुझे सहारा देकर बिस्तर तक लाये। मैं वापस उनकी बाँहों में दुबक कर गहरी नींद में सो गयी।

 

अगले दिन सुबह मुझे नसरीन भाभी ने उठाया तो सुबह के दस बज रहे थे। मैं उस पर भी उठने के मूड में नहीं थी और  �ऊँ-ऊँ� कर रही थी। अचानक मुझे रात की सारी घटना याद आयी। मैंने चौंक कर आँखें खोलीं तो मैंने देखा कि मेरा नंगा जिस्म गले तक चादर से ढका हुआ है और मेरे पैरों में अभी भी सैंडल बंधे थे। मुझ पर किसने चादर ढक दी थी, पता नहीं चल पाया। वैसे ये तो लग गया था कि ये फिरोज़ के अलावा कोई नहीं हो सकता है।

 

�क्यों मोहतर्मा? रात भर कुटायी हुई क्या?� नसरीन भाभी ने मुझे छेड़ते हुए पूछा।

 

�भाभी जान! आप भी ना बस�� मैंने उठते हुए कहा।

 

�कितनी बार डाला तेरे अंदर अपना रस। रात भर में तूने तो उसकी गेंदों का सारा माल खाली कर दिया होगा।�

 

मैं अपने सैंडल उतार कर बाथरूम की ओर भागने लगी तो उन्होंने मेरी बाँह पकड़ कर रोक लिया, �बताया नहीं तूने?�

 

मैं अपना हाथ छुड़ा कर बाथरूम में भाग गयी। नसरीन भाभी दरवाजा खटखटाती रह गयीं लेकिन मैंने दरवाजा नहीं खोला। काफी देर तक मैं शॉवर के नीचे नहाती रही और अपने जिस्म पर बने अनगिनत दाँतों के दागों को सहलाती हुई रात के मिलन की एक-एक बात को याद करने लगी। फिरोज़ भाई जान की हरकतें याद करके मैं बांवरियों की तरह खुद ही मुस्कुरा रही थी। उनका मोहब्बत करना, उनकी हरकतें, उनका गठा हुआ जिस्म, उनकी बाजुओं से उठती पसीने की खुश्बू, उनकी हर चीज़ मुझे एक ऐसे नशे में दुबोती जा रही थी जो शराब के नशे से कहीं ज्यादा मादक था। मेरे जिस्म का रोयाँ-रोयाँ किसी बिन ब्याही लड़की कि तरह अपने आशिक को पुकार रहा था। शॉवर से गिरती ठंडे पानी की फ़ुहार भी मेरे जिस्म की गर्मी को ठंडा नहीं कर पा रही थी बल्कि खुद गरम भाप बन कर उड़ जा रही थी।

 

काफी देर तक नहाने के बाद मैं बाहर निकली। कपड़े पहन कर मैं बेड रूम से निकली तो मैंने पाया कि जेठ जेठानी दोनों निकलने की तैयारी में लगे हुए हैं। ये देख कर मेरा वजूद जो रात के मिलन के बाद से बादलों में उड़ रहा था एक दम से कठोर जमीन पर आ गिरा। मेरा चहकता हुआ चेहरा एकदम से कुम्हला गया।

 

मुझे देखते ही जावेद ने कहा, �शहनाज़ खाना तैयार कर लो। भाभी जान ने काफी कुछ तैयारी कर ली है.... अब फिनिशिंग टच तुम दे दो। भाई जान और भाभी जल्दी ही निकल जायेंगे।� मैं कुछ देर तक चुपचाप खड़ी रही और तीनों को सामान पैक करते देखती रही। फिरोज़ भाई जान कनखियों से मुझे देख रहे थे। मेरी आँखें भारी हो गयी थीं और मैं तुरंत वापस मुड़ कर किचन में चली गयी।

 

मैं किचन में जाकर रोने लगी। अभी तो एक प्यारे से रिश्ते की शुरुआत ही हुई थी और वो पत्थर दिल बस अभी छोड़ कर जा रहा है। मैं अपने होंठों पर अपने हाथ को रख कर सुबकने लगी। तभी पीछे से कोई मेरे जिस्म से लिपट गया। मैं उनको पहचानते ही घूम कर उनके सीने से लग कर फ़फ़क कर रो पड़ी। मेरे आँसुओं का बाँध टूट गया था।

 

�प्लीईऽऽज़ कुछ दिन और रुक जाओ!� मैंने सुबकते हुए कहा।

 

�नहीं! मेरा ऑफिस में पहुँचना बहुत जरूरी है वरना एक जरूरी मीटिंग कैंसल करनी पड़ेगी।�

 

�कितने ज़ालिम हो.... आपको मीटिंग की पड़ी है और मेरा क्या होगा?�

 

�क्यों जावेद है ना और हम हमेशा के लिये थोड़ी जा रहे हैं..... कुछ दिन बाद मिलते रहेंगे। ज्यादा साथ रहने से रिश्तों में बासीपन आ जाता है।� वो मुझे साँतवना देते हुए मेरे बालों को सहला रहे थे। मेरे आँसू रुक चुके थे लेकिन अभी भी उनके सीने से लग कर सुबक रही थी। मैंने आँसुओं से भरा चेहरा ऊपर किया। फिरोज़ भाई जान ने अपनी अँगुलियों से मेरी पलकों पर टिके आँसुओं को साफ़ किया और फिर मेरे गीले गालों पर अपने होंठ फ़िराते हुए मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। मैं तड़प कर उनसे किसी बेल की तरह लिपट गयी। हमारा वजूद एक हो गया था। मैंने अपने जिस्म का सारा बोझ उनपर डाल दिया और उनके मुँह में अपनी जीभ डाल कर उनके रस को चूसने लगी। मैंने अपने हाथों से उनके लंड को टटोला।

 

�तेरी बहुत याद आयेगी!� मैंने ऐसे कहा मानो मैं उनके लंड से बातें कर रही हूँ, �तुझे नहीं आयेगी मेरी याद?�

 

�इसे भी हमेशा तेरी याद आती रहेगी�, उन्होंने मुझसे कहा।

 

�आप चल कर तैयारी कीजिये मैं अभी आती हूँ�, मैंने उनसे कहा। वो मुझे एक बार और चूम कर वापस चले गये।

 

उनके निकलने की तैयारी हो चुकी थी। उनके निकलने से पहले मैंने सबकी आँख बचा कर उनको एक गुलाब भेंट किया जिसे उन्होंने तुरंत अपने होंठों से छुआ कर अपनी जेब में रख लिया।

 

काफ़ी दिनों तक मैं उदास रही। जावेद मुझे बहुत छेड़ा करता था उनका नाम ले-लेकर। मैं भी उनकी बातों के जवाब में नसरीन भाभी जान को ले आती थी। धीरे-धीरे हमारा रिश्ता वापस नॉर्मल हो गया। फिरोज़ भाई जान का अक्सर मेरे पास फोन आता था। हम नेट पर कैमकॉर्डर की मदद से एक दूसरे को देखते हुए बातें करते थे।

 

उसके बाद काफी दिनों तक सब कुछ अच्छा चलता रहा। लेकिन जो सबसे बुरा हुआ वो ये कि मेरी प्रेगनेंसी नहीं ठहरी। फिरोज़ भाई जान को एक यादगार गिफ्ट देने की तमन्ना दिल में ही रह गयी। फिरोज़ भाई जान से उस मुलाकात के बाद उस महीने मेरे पीरियड आ गये। उनके वीर्य से मैं प्रेगनेंट नहीं हुई। ये उनको और ज्यादा उदास कर गया। लेकिन मैंने उन्हें दिलासा दिया। उनको मैंने कहा, �मैंने जब ठान लिया है तो मैं तुम्हें ये गिफ्ट तो देकर ही रहुँगी।�

 

वहाँ सब ठीक थाक चलता रहा लेकिन कुछ महीने बाद जावेद काम से देर रात तक घर आने लगे। मैंने उनके ऑफिस में भी पता किया तो पता लगा कि वो बिज़नेस में घाटे के दौर से गुजर रहे हैं और जो फर्म उनका सारा प्रोडक्शन खरीद कर विदेश भेजता था, उस फर्म ने उनसे रिश्ता तोड़ देने का ऐलान किया है।

 

एक दिन जब उदास हो कर जावेद घर आये तो मैंने उनसे इस बारे में डिसकस करने का सोचा। मैंने उनसे पूछा कि वो परेशान क्यों रहने लगे हैं। तो उन्होंने कहा, �इलाईट एक्सपोर्टिंग फर्म हमारी कंपनी से नाता तोड़ रहा है। जहाँ तक मैंने सुना है, उनका मुंबई की किसी फर्म के साथ पैक्ट हुआ है।�

 

�लेकिन हमारी कंपनी से इतना पुराना रिश्ता कैसे तोड़ सकते हैं?�

 

�क्या बताऊँ! उस फर्म का मालिक रस्तोगी और चिन्नास्वामी� पैसे के अलावा भी कुछ फेवर माँगते हैं जो कि मैं पूरा नहीं कर सकता�, जावेद ने कहा।

 

�ऐसी क्या डिमाँड करते हैं?� मैंने उनसे पूछा।

 

�दोनों एक नंबर के राँडबाज हैं। उन्हें लड़की चाहिये।�

 

�तो इसमें क्या परेशान होने की बात हुई। इस तरह की फरमाईश तो कईं लोग करते हैं और करते रहेंगे!� मैंने उनके सर पर हाथ फ़ेर कर साँतवना दी, �आप तो कुछ इस तरह की लड़कियाँ रख लो अपनी कंपनी में या फिर किसी प्रोफेशनल को एक दो दिन का पेमेंट देकर मंगवा लो उनके लिये।�

 

�अरे बात इतनी सी होती तो परेशानी क्या थी। वो बाज़ारू औरतों को नहीं पसंद करते। उन्हें तो कोई साफ़ सुथरी औरत चाहिये..... कोई घरेलू औरत!� जावेद ने कहा, �दोनों अगले हफ़्ते यहाँ आ रहे हैं और अपना ऑर्डर कैंसल करके इनवेस्टमेंट वापस ले जायेंगे। हमारी कंपनी बंद हो जायेगी।�

 

�तो अब्बू से बात कर लो.... वो आपको पैसे दे देंगे�, मैंने कहा।

 

�नहीं! मैं उनसे कुछ नहीं माँगुँगा। मुझे अपनी परेशानी को खुद ही हल करना पड़ेगा। अगर पैसे दे भी दिये तो भी जब खरीदने वाला कोई नहीं रहेगा तो कंपनी को तो बंद करना ही पड़ेगा।� जावेद ने कहा, �अमेरिका में जो फर्म हमारा माल खरीदती है, वो उसका पता देने को तैयार नहीं हैं। नहीं तो मैं डायरेक्ट डीलिंग ही कर लेता।�

 

�फिर?� मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी कि इसका क्या उपाय सोचा जाय।

 

�फिर क्या....? जो होना है होकर रहेगा।� उन्होंने एक गहरी साँस ली। मैंने उन्हें इतना परेशान कभी नहीं देखा था।

 

�कल आप उनको कह दो कि लड़कियों का इंतज़ाम हो जायेगा।� मैंने कहा, �देखते हैं उनके यहाँ पहुँचने से पहले क्या किया जा सकता है।�

 

अगले दिन जब वो आये तो उन्हें रिलैक्स्ड पाने कि जगह और ज्यादा टूटा हुआ पाया। मैंने कारण पूछा तो वो टाल गये।

 

�आपने बात की थी उनसे?�

 

�हाँ!�

 

�फिर क्या कहा आपने? वो तैयार हो गये? अरे परेशान क्यों होते हो..... हम लोग इस तरह की किसी औरत को ढूँढ लेंगे। जो दिखने में सीधी साधी घरेलू औरत लगे।�

 

�अब कुछ नहीं हो सकता!�

 

�क्यों?� मैंने पूछा।

 

�तुम्हें याद है वो हमारे निकाह में आये थे।�

 

आये होंगे� तो?�

 

�उन्होंने निकाह में तुम्हें देखा था।�

 

�तो???� मुझे अपनी साँस रुकती सी लगी और एक अजीब तरह का खौफ पूरे जिस्म में छाने लगा।

 

�उन्हें सिर्फ तुम चाहिये।�

 

�क्या?� मैं लगभग चींख उठी, �उन हरामजादों ने समझा क्या है मुझे? कोई रंडी?�

 

वो सर झुकाये हुए बैठे रहे। मैं गुस्से से बिफ़र रही थी और उनको गालियाँ दे रही थी और कोस रही थी। मैंने अपना गुस्सा शांत करने के लिये किचन में जाकर एक पैग व्हिस्की का पिया। फिर वापस आकर उनके पास बैठ गयी और कहा, �फिर???� मैंने अपने गुस्से को दबाते हुए उनसे धीरे-धीरे पूछा।

 

�कुछ नहीं हो सकता!� उन्होंने कहा, �उन्होंने साफ़ साफ़ कहा है कि या तो तुम उनके साथ एक रात गुजारो या मैं इलाईट ग्रुप से अपना कांट्रेक्ट खत्म समझूँ�, उन्होंने नीचे कार्पेट की ओर देखते हुए कहा।

 

�हो जाने दो कांट्रेक्ट खत्म। ऐसे लोगों से संबंध तोड़ लेने में ही भलाई होती है। तुम परेशान मत हो। एक जाता है तो दूसरा आ जाता है।�

 

�बात अगर यहाँ तक होती तो भी कोई परेशानी नहीं थी।� उन्होंने अपना सिर उठाया और मेरी आँखों में झाँकते हुए कहा, बात इससे कहीं ज्यादा संजीदा है। �अगर वो अलग हो गये तो एक तो हमारे माल की खपत बंद हो जायेगी जिससे कंपनी बंद हो जायेगी� दूसरा उनसे संबंध तोड़ते ही मुझे उन्हें १५ करोड़ रुपये देने पड़ेंगे जो उन्होंने हमारी फर्म में इनवेस्ट कर रखे हैं।�

 

मैं चुपचाप उनकी बातों को सुन रही थी लेकिन मेरे दिमाग में एक लड़ाई छिड़ी हुई थी।

 

�अगर फैक्ट्री बंद हो गयी तो इतनी बड़ी रकम मैं कैसे चुका पाऊँगा। अपनी फैक्ट्री बेच कर भी इतना नहीं जमा कर पाऊँगा।� अब मुझे भी अपनी हार होती दिखायी दी। उनकी माँग मानने के अलावा अब और कोई रास्ता नहीं बचा था। उस दिन हम दोनों के बीच और बात नहीं हुई। चुपचाप खाना खा कर हम सो गये। मैंने तो सारी रात सोचते हुए गुजारी। ये ठीक है कि जावेद के अलावा मैंने उनके बहनोई और उनके बड़े भाई से जिस्मानी ताल्लुकात बनाये थे और कुछ-कुछ ताल्लुकात ससुर जी के साथ भी बने थे लेकिन उस फैमिली से बाहर मैंने कभी किसी से जिस्मानी ताल्लुकात नहीं बनाये।

 

अगर मैं उनके साथ एक रात बिताती हूँ तो मुझ में और दो टके की किसी रंडी में क्या फर्क रह जायेगा। कोई भी मर्द सिर्फ मन बहलाने के लिये एक रात की माँग करता है क्योंकि उसे मालूम होता है कि अगर एक बार उसके साथ जिस्मानी ताल्लुकात बन गये तो ऐसी एक और रात के लिये औरत कभी मना नहीं कर पायेगी।

 

लेकिन इसके अलावा हो भी क्या सकता था। इस भंवर से निकलने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। ऐसा लग रहा था कि मैं एक बीवी से एक रंडी बनती जा रही हूँ। किसी ओर भी रोश्नी की कोई किरण नहीं दिख रही थी। किसी और से अपना दुखड़ा सुना कर मैं जावेद को जलील नहीं करना चाहती थी।

 

सुबह मैं अलसायी हुई उठी और मैंने जावेद को कह दिया, �ठीक है! मैं तैयार हूँ!�

 

जावेद चुपचाप सुनते रहे और नाश्ता करके चले गये। उस दिन शाम को जावेद ने बताया कि रस्तोगी से उनकी बात हुई थी और उन्होंने रस्तोगी को मेरे राज़ी होने की बात कह दी है।

 

�हरामजादा� मादरचोद�. खुशी से मारा जा रहा होगा!� मैंने मन ही मन जी भर कर गंदी-गंदी गालियाँ दीं

 

�अगले हफ़्ते दोनों एक दिन के लिये आ रहे हैं�, जावेद ने कहा, �दोनों दिन भर ऑफिस के काम में बिज़ी होंगे.... शाम को तुम्हें उनको एंटरटेन करना होगा।�  

 

�कुछ तैयारी करनी होगी क्या?�

 

�किस बात की तैयारी?� जावेद ने मेरी ओर देखते हुए कहा, �शाम को वो खाना यहीं खायेंगे, उसका इंतज़ाम कर लेना..... पहले हम सब ड्रिंक करेंगे।�

 

मैं बुझे मन से उस दिन का इंतज़ार करने लगी।

 

अगले हफ़्ते जावेद ने उनके आने की इत्तला दी। उनके आने के बाद सारा दिन जावेद उनके साथ बिज़ी थे। शाम को छः बजे के आस पास वो घर आये और उन्होंने एक पैकेट मेरी ओर बढ़ाया।

 

�इसमें उन लोगों ने तुम्हारे लिये कोई ड्रेस पसंद की है। आज शाम को तुम्हें यही ड्रेस पहननी है। इसके अलावा जिस्म पर और कुछ नहीं रहे.... ये कहा है उन्होंने।�

 

!!! क्रमशः !!!


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